15 अगस्त का पुराना लखनऊ – मेरा मिनी व्लॉग ✨🇮🇳 15 अगस्त की सुबह जब सूरज हल्की-हल्की किरणें बिखेर रहा था, तभी मेरे मन में एक ही खयाल आया – "आज क्यों न पुराने लखनऊ की गलियों में घूमकर आज़ादी का जश्न महसूस किया जाए?" शहर की पहचान सिर्फ उसकी तहज़ीब या नवाबी अंदाज़ से नहीं है, बल्कि उन तंग गलियों, इमामबाड़ों और बाज़ारों से भी है, जो हर मौके पर अपनी अलग ही कहानी कहते हैं। और 15 अगस्त का दिन तो अपने आप में खास होता है। सुबह का सफ़र 🚶♂️ मैंने अपना बैग उठाया, कैमरा संभाला और निकल पड़ा पुराने लखनऊ की ओर। जैसे ही चौक और नक्खास की तरफ बढ़ा, रास्तों पर तिरंगे लहराते हुए दिखने लगे। हर गली, हर दुकान, हर इमारत तिरंगे की रौनक में नहाई हुई थी। बच्चे हाथों में छोटे-छोटे झंडे लिए भागते-खेलते दिख रहे थे। कहीं देशभक्ति के गीत बज रहे थे, तो कहीं लोग झंडा फहराने की तैयारी कर रहे थे। बड़ा इमामबाड़ा और उसकी शान 🕌 पुराने लखनऊ का जिक्र हो और बड़ा इमामबाड़ा न देखा जाए, ऐसा कैसे हो सकता है? मैं सबसे पहले वहीं पहुँचा। बाहर का नज़ारा देखते ही दिल खुश हो गया। सैकड़ों लोग इकट्ठा थे। हर कोई अपने-अपने कैमरे और मोबाइल से फोटो ले रहा था। इमामबाड़े की ऊँची-ऊँची दीवारें तिरंगे की रोशनी से सजाई गई थीं। एक तरफ़ मंच बना था जहाँ स्थानीय स्कूलों के बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम की तैयारी कर रहे थे। छोटे-छोटे बच्चों को आज़ादी के गीत गाते देख मेरे अंदर भी देशभक्ति का जज़्बा और गहरा हो गया। रूमी दरवाज़ा – नवाबी लखनऊ का स्वागत द्वार 🌉 इमामबाड़े से निकलकर मैं सीधा रूमी दरवाज़े की ओर गया। 15 अगस्त की वजह से यहाँ भी खास सजावट थी। हवा में तिरंगे झंडे लहरा रहे थे। दरवाज़े से गुजरते हुए ऐसा लगा जैसे इतिहास अपने आप मेरे सामने खुल रहा हो। रूमी दरवाज़े के पास खड़े होकर मैंने चारों तरफ़ देखा – ऑटो, रिक्शा, बाइक और भीड़ का एक अलग ही संगम था। लेकिन इस भीड़ में भी एक अनुशासन था, सब लोग खुश नज़र आ रहे थे। हर कोई आज़ादी के रंग में डूबा हुआ था। चौक की गलियाँ और बाज़ार 🛍️ फिर मैं चौक की गलियों की तरफ़ बढ़ा। यहाँ की तंग गलियाँ हमेशा की तरह ज़िंदादिल थीं। दुकानों के ऊपर तिरंगे की झालरें लटक रही थीं। इत्र की खुशबू, कबाब की सोंधी महक और मिठाइयों का स्वाद – सब मिलकर चौक को और भी खास बना रहे थे। मैंने सोचा क्यों न थोड़ा "लखनवी स्वाद" चखा जाए। पहले टुंडे कबाबी पहुँचा, जहाँ पहले से लंबी लाइन लगी हुई थी। लेकिन माहौल इतना खुशनुमा था कि इंतज़ार करने में भी मज़ा आ रहा था। गरमा-गरम कबाब और पराठा जब प्लेट में आया तो मानो सफ़र पूरा हो गया हो। नक्खास का रंगीन मेला 🎪 15 अगस्त के दिन नक्खास का बाज़ार और भी रंगीन हो जाता है। वहाँ खिलौनों की दुकानें, मिठाई की स्टॉल और देशभक्ति के झंडे बेचते लोग – हर तरफ़ रौनक थी। बच्चे गुब्बारे लिए घूम रहे थे। कहीं पर पतंगें बिक रही थीं जिन पर "वंदे मातरम्" और "जय हिन्द" लिखा था। शाम की रोशनी और देशभक्ति 🌆 शाम तक जब मैं हुसैनाबाद पहुँचा, तो वहाँ का नज़ारा देखने लायक था। इमारतें रोशनी से जगमगा रही थीं। हुसैनाबाद क्लॉक टॉवर के पास लोगों की भीड़ जमा थी। चारों ओर से "भारत माता की जय" और "वंदे मातरम्" की आवाज़ें आ रही थीं। तिरंगे रंग की रोशनी में जब क्लॉक टॉवर चमक रहा था, तो मुझे लगा कि यही असली लखनऊ है – इतिहास, तहज़ीब, स्वाद और देशभक्ति का संगम। दिन का अंत ✨ रात को घर लौटते हुए मेरा मन संतोष से भर गया। 15 अगस्त के इस सफ़र ने मुझे फिर से याद दिलाया कि हमारा लखनऊ सिर्फ़ नवाबों और इमारतों का शहर नहीं है, बल्कि यह जज़्बातों, संस्कृतियों और भाईचारे का शहर है। आज का दिन सिर्फ घूमने का नहीं था, बल्कि आज़ादी की उस भावना को महसूस करने का था, जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने अपने प्राण न्यौछावर किए। 👉 कुल मिलाकर मेरा यह व्लॉग 15 अगस्त को पुराने लखनऊ की गलियों की रौनक, उसकी खुशबू, उसके स्वाद और देशभक्ति के रंगों से भरा हुआ था। यह सफ़र मेरे दिल में हमेशा यादगार रहेगा।
