एक शहर में एक भ्रष्ट शाखा प्रमुख था। पद का इतना घमंड कि खुद को मोहल्ले का राजा समझता। मेहनत कुछ नहीं, बस दिखावा — और लोगों में खुला पक्षपात। त्योहार पर MLA सबके लिए T–shirt भेजते थे, लेकिन यह अपने पसंदीदा लोगों को ही देता— जैसे T–shirt की फैक्ट्री उसी की हो। दही–हांडी से पहले सड़क को अपनी निजी संपत्ति समझकर ब्लॉक कर देता। पोस्टर, बैनर, बाइक–गाड़ियाँ—पूरा रास्ता जाम। दिवाली में भी सिर्फ अपने लोगों को गिफ्ट, बाकियों से कहता—“मेरे घर आकर सर्टिफ़िकेट ले जाना।” त्योहार के बाद फिर वही तकलीफ़— टूटी सड़कें, गटर के ढक्कन गायब, कीचड़ से भरी गलियाँ। शिकायत करो तो बदला लेता और अकड़कर कहता— “मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।” लेकिन जब MLA को सब पता चला, वे तुरंत मौके पर पहुँचे। जनता ने फोटो–वीडियो के साथ शिकायत दी। मीडिया भी पहुँची—और पूरी पोल खुल गई। नगरपालिका पर दबाव पड़ा और उसी दिन काम शुरू— नई सड़कें, गटर ढक्कन, साफ–सफाई, स्ट्रीटलाइट ठीक। सालों बाद पहली बार लोगों को राहत मिली। शाखा प्रमुख लोगों के सामने बेनकाब हो गया। लोग कहने लगे— गलती MLA की नहीं, गलत तो वह शाखा प्रमुख था। --- सीख वोट तभी दो जब नेता का काम अच्छा हो। अपनी आवाज़ उठाओ— तुम चलो तो हिंदुस्तान चले। Jai Hind
