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विषय: “मन को प्रभु में लगाना ही जीवन का सार है” भाइयो और बहनों, यह मन बड़ा चंचल है। यह कभी इधर भागता है, कभी उधर भागता है। जब तक मन संसार में लगा रहेगा, तब तक दुख मिलेगा। और जब यही मन भगवान में लग जाएगा, तब जीवन में आनंद ही आनंद होगा। देखो, धन से सुख नहीं मिलता, पद से शांति नहीं मिलती, संबंधों से स्थिरता नहीं मिलती — क्योंकि ये सब नश्वर हैं। परंतु जब मन ठाकुर जी की भक्ति में लग जाता है, तो फिर अंदर एक ऐसा आनंद आता है, जो शब्दों में नहीं कहा जा सकता। श्रीकृष्ण कहते हैं — > “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…” जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब प्रभु स्वयं अवतार लेते हैं। लेकिन याद रखो — प्रभु का अवतार बाहर नहीं, हमारे मन में भी होता है, जब हम अपने हृदय को पवित्र कर लेते हैं। आज हर व्यक्ति बाहर भगवान को खोज रहा है। कोई मंदिर में, कोई तीर्थ में, कोई विदेश यात्रा में। परंतु महाराज कहते हैं — > “भगवान कहीं बाहर नहीं, वो तुम्हारे अपने हृदय में विराजमान हैं। बस मन के पर्दे हटाओ, वो दिखाई देंगे।” अगर हम रोज़ कुछ पल प्रभु का स्मरण करें, नाम जपें — जैसे “राधे कृष्ण”, “राम नाम”, “गोविंद”, तो मन धीरे-धीरे निर्मल होने लगता है। और वही निर्मल मन भगवान का सच्चा मंदिर बन जाता है। महाराज कहते हैं — > “भक्ति कोई कठिन साधना नहीं है। बस मन में प्रेम चाहिए। बिना प्रेम के पूजा केवल रीति रह जाती है।” तो भाइयो,
