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🌟 बाबूराव की कहानी – मेहनत, हौसले और सफलता की उड़ान 🌟 एक छोटे से गांव में रहता था बाबूराव, एक साधारण लेकिन बेहद ईमानदार और मेहनती इंसान। उसकी पढ़ाई ज्यादा नहीं हुई थी, और ज़िंदगी हमेशा आसान नहीं रही, लेकिन एक बात कभी नहीं बदली — उसका मुस्कुराता चेहरा और कभी न हार मानने वाला जज़्बा। हर सुबह सूरज उगने से पहले बाबूराव खेतों में काम करने निकल जाता। शाम को वह पड़ोसियों के टूटे औज़ार ठीक करता, दीवारें रंगता या कोई भी छोटा-मोटा काम करता जिससे थोड़ी आमदनी हो सके। लोग अक्सर पूछते, “बाबूराव, थकते नहीं क्या?” बाबूराव हँसते हुए जवाब देता, “अगर रुक जाऊँगा, तो कैसे बढ़ पाऊँगा?” एक दिन पास के शहर में सरकार की ओर से एक स्वरोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम की घोषणा हुई। गांव के कई लोग तो डर के मारे गए ही नहीं, पर बाबूराव ने ठान लिया — सीखूंगा, चाहे जो हो जाए। भाषा की दिक्कत थी, तकनीक की समझ नहीं थी, लेकिन बाबूराव ने हार नहीं मानी। हर क्लास में सबसे पहले आता, सबसे ज़्यादा सवाल पूछता, और देर रात तक अभ्यास करता। 6 महीने के भीतर उसने खुद की मोबाइल रिपेयर और एक्सेसरीज़ की दुकान शुरू कर दी। शुरुआत में ग्राहक कम आए, लेकिन उसकी ईमानदारी, मेहनत और मुस्कान ने दिल जीत लिया। धीरे-धीरे काम बढ़ा, ग्राहक लौटने लगे और नाम होने लगा। आज बाबूराव न केवल एक सफल दुकानदार है, बल्कि वह गांव के युवाओं को भी सिखा रहा है — कि अगर हिम्मत हो, तो कोई भी ऊँचाई छोटी नहीं होती।