AMRISH PURI

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सुबह का सूरज हल्की रोशनी बिखेर रहा था। रेलवे स्टेशन पर भीड़ थी, पर अर्पित की आँखों में बस उदासी ही थी। वह ट्रेन की खिड़की से बाहर देख रहा था—दिल्ली से लौटते वक्त उसका मन अजीब सा था। आज पहली बार वह माँ को बिना बताए घर छोड़कर जा रहा था। नौकरी की तलाश में, बड़े सपनों की खोज में। अर्पित का बचपन एक छोटे से गाँव में बीता था। उसकी माँ, कमला देवी, ने उसे अकेले पाला था। पिता का साया बचपन में ही उठ गया था, और माँ ने मजदूरी करके उसकी पढ़ाई पूरी करवाई थी। वह अक्सर कहती, "बेटा, बड़ा आदमी बन, पर दिल हमेशा छो