Shri krishana sad

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hi
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जैसे दीपक की लौ हवा में डगमगाती है, वैसे ही हमारा मन विचारों से चंचल होता है। इसलिए ध्यान रूपी छत्र से मन को ढकना पड़ता है। नियमित अभ्यास से ही मन स्थिर होता है, और तभी आत्मज्ञान का प्रकाश मिलता है।