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वाराणसी की गलियों में राधा हर सुबह ठेले पर खाना बेचती थी—सादा चावल, आलू की सब्ज़ी और थोड़ा अचार। पति की मौत के बाद दो बेटों की ज़िम्मेदारी उसी पर थी। खुद कभी ज़्यादा नहीं खाती, पर बेटों की प्लेट हमेशा भरी होती।
एक दिन छोटे बेटे ने कहा, “माँ, स्कूल में सबके पास टिफ़िन है, मेरे पास नहीं।”
राधा ने कुछ नहीं कहा। अगली सुबह उसने अपनी एकमात्र सोने की नथ उतारी और बेच दी। उसी पैसों से टिफ़िन डिब्बा खरीदा और स्कूल की फीस भर दी।
रात को बेटा बोला, “माँ, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा ना, तो तुम्हें ठेला