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मरीज़ों के अधिकारों की बात करें तो हमें यह समझना होगा कि चिकित्सा में मरीज़ की स्वायत्तता का क्या महत्व है। क्या एक मरीज़ को अपने इलाज के बारे में निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए? यह एक गंभीर विचार का विषय है।
Description
"मैं जानता हूँ... ज़िंदगी एक अनमोल तोहफा है।
हर साँस... हर धड़कन... एक नया मौका देती है जीने का।
लेकिन जब ये साँसे बोझ बन जाएँ...
जब शरीर हर पल एक सज़ा बने...
तो क्या जीना, ज़िंदगी कहलाता है?"
(थोड़ी रुकी हुई आवाज़ में)
"मैं अब थक गया हूँ।
दर्द अब सिर्फ बदन में नहीं है... आत्मा में भी समा गया है।
दवाइयाँ, अस्पताल, मशीनें... सब कोशिशें हो चुकी हैं।
अब सिर्फ एक खामोशी बची है — जो अंदर से चीख रही है।"
(आवाज़ में करुणा और शांति हो)
"मैं मौत नहीं चाहता...
मैं सिर्फ मुक्ति चाहता हूँ।
एक शांत विदाई... बिना दर्द के।
जिसमें मेरा और अपनों का सम्मान बना रहे।"
(धीरे-धीरे अंत की ओर जाएँ)
"क्या कोई मुझे वो अधिकार देगा...?
मुझे अपने ही जीवन की गरिमा से विदा लेने का हक़...
क्योंकि कभी-कभी, विदाई भी एक सम्मान होती है।
मुक्ति, भी एक करुणा है।
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