描述
काले कुहासे की छाया रात के अंधेरे में गाँव की गलियाँ सूनसान हो चुकी थीं। एक छोटे से घर में, राधा अपने छोटे भाई मोहन के साथ अकेली थी। उनके माता-पिता काम के सिलसिले में बाहर गए हुए थे। अचानक, घर में अजीब सी खामोशी छा गई। हवा भी जैसे रुक सी गई थी। राधा ने मोहन को अपनी तरफ खींचते हुए कहा, "तुम ठीक हो न?" मोहन सिर्फ हाँ में सिर हिलाता, लेकिन उसका चेहरा डर से सफेद था। तभी खिड़की से एक काली छाया दिखी। राधा डरते हुए खिड़की की तरफ बढ़ी। बाहर कुछ भी नहीं था, लेकिन अजीब सी आवाजें आ रही थीं। जैसे कोई फुसफुसा रहा हो। राधा ने मोहन से कहा, "तुम कमरे में रहो, मैं देखती हूँ क्या है।" वह धीरे-धीरे बाहर निकली। जैसे ही वह घर के आंगन में पहुँची, अचानक दरवाजे की आवाज सुनाई दी। दरवाजा खुद-ब-खुद बंद हो गया, और राधा के शरीर में एक सिहरन दौड़ गई। वह घबराई हुई वापस दौड़ी, लेकिन कमरे में घुसते ही उसने देखा कि मोहन कहीं नहीं था। कमरे की दीवारों पर खून के धब्बे थे, और उसके चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा था। फिर अचानक, राधा के कानों में एक खौ़फनाक हंसी गूंजी। "तुमने हमें छोड़ दिया था, अब तुम भी हमारे साथ हो!" राधा पलटते हुए कमरे के कोने में खड़ी हुई काली छाया को देख सकती थी, जो उसकी तरफ बढ़ रही थी। अगली सुबह, घर में राधा और मोहन का कोई सुराग नहीं मिला। सिर्फ एक खौ़फनाक हंसी हवा में गूंज रही थी।